शिक्षा एमएससी बॉटनी से करने के बाद लॉ में स्नातक तथा डिप्लोमा इन सायबर लॉ भी किया. वर्तमान में मधेपुरा के न्यायालय में वर्ष 1997 से क्लर्क की नौकरी कर रहा हूँ.
कम्प्यूटर और इंटरनेट के क्षेत्र में वर्ष 2006 में प्रवेश किया तोउतरता चला गया. इसके तकनीक पर अध्ययन किया तो लगा ज्ञान बांटने से ही बढ़ेगा. मधेपुरा के कई संस्थान जैसे एसएमसी, राज इन्फोटेक, गौतम इन्फोटेक, कम्प्यूटर सिटी सेंटर आदि में इंटरनेट की तकनीक के अध्यापन का कार्य भी किया.
जिद्दी स्वभाव, डर नहीं के बराबर और निगेटिव को पॉजिटिव बनाना जानता हूँ. 'वर्स्ट' कंडीशन के लिए हर दम तैयार रहना मेरी मजबूती है. हाँ जरूरत से ज्यादा भावनात्मक होना एक कमजोर पक्ष है. 'प्रसिद्ध लोकोक्ति 'जहाँ चाह..वहां राह...' में विश्वास है और समय के अभाव के कारण सबसे ज्यादा तनाव होता है. अक्सर मुंह से निकल पड़ता है, "घड़ी की सूई घूमती है"..
एशियन स्कूल ऑफ सायबर लॉ, पुणे ने नवाजा 'स्टूडेंट ऑफ द मंथ' से..
इसे मैं अपने जीवन में अब तक का सबसे सुखद सम्मान मानता हूँ जब सायबर क्राइम और सायबर लॉ में एशिया की सबसे विख्यात संस्था 'एशियन स्कूल ऑफ सायबर लॉ, पुणे ने मुझे माह अगस्त 2009 के लिए 'स्टूडेंट ऑफ द मंथ' चुना. पहले तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ जब पुणे की संस्था ने फोन पर मुझे सूचित किया. पर 01 अगस्त 2009 को सुबह जब एशियन स्कूल के वेबसाइट के होम पेज पर मेरी तस्वीर लगी. मैंने इस नामी संस्था से जनवरी से जुलाई के बैच में 'डिप्लोमा इन सायबर लॉ' की डिग्री हासिल की थी. अखबारों ने भी मेरी इस सफलता को प्रमुखता से प्रकाशित किया था. ये वो समय था जब मधेपुरा जैसे कस्बाई इलाके में इंटरनेट अपने विस्तार के शुरुआती दिनों में था.बहुत कम ही लोग जानते थे कि 'सायबर लॉ' क्या होता है. सायबर वर्ल्ड से दूर भागने का प्रयास करते लोगों को पता नहीं चला कि कब इंटरनेट की विस्तृत दुनिया में वे प्रवेश कर चुके हैं.
मेरी उस उपलब्धि का लिंक आज भी 'एशियन स्कूल ऑफ सायबर लॉ, पुणे के वेबसाइट पर है... http://www.asclonline.com/blog/2009/08/01/student-of-the-month-august-2009/
जब टीवी पर मुझे 'इंटरनेट विशेषज्ञ' के रूप में दिखाया गया...
26 अक्टूबर 2007 का दिन था जब मधेपुरा के एक सायबर ठगी के मामले में इसे पकड़े जाने की विधि पर मेरी राय को 'ईटीवी' पर दिखाया गया था. प्राप्त ई-मेल के हेडर से आईपी एड्रेस
निकालने तथा 'अपराधी कम्प्यूटर' को ढूंढ निकालने के विषय में उस समय कम ही लोगों को पता था.
टीवी पर बार-बार मुझे दिखाया जाता रहा और इंटरनेट
विशेषज्ञ की उपाधि उन लोगों ने दे दी थी.
जगह-जगह से बधाईयों के कॉल आने लगे तो मन में ये सवाल उठने लगे कि क्या मैं मधेपुरा के
लोगों को इंटरनेट की सही जानकारी देने में सक्षम हूँ ?? शायद इस
कार्यक्रम से मिले उत्साह ने ही मुझे विभिन्न संस्थाओं में इंटरनेट पढ़ाने को प्रेरित किया.